Monday, October 26, 2009

एक शख्स आता है याद ..



ज़िन्दगी की इस भागादौडी मै..
कब, कहा , कौन ,कैसे, कोई ?
मुझसे कही टकरा जाये..
और ..कब , कहा , कैसे , कोई..
" मैं " से " हम " हो जाये..

कभी इसी कश्मकश मै ,
ज़िन्दगी एक सुनहरा खाब बन जाये..
सपनो के परो पर संजोया हुआ,
बादलो की बीच अपना एक छोटा सा घर नज़र आये..

खाबों की कड़ी जब जुड़ती जाये,
तो मेरे हमसफ़र के साथ गुज़रा हर लम्हा ,
सुनहरी याद बन जाये..

यादों के झरोखों में झांक के देखू,
तो कभी तो जोरो की हंसी आए..
तो कभी आँखों में मोती बन जाये..

रोज़ नए सपने बुनना ,
रोज़ इठलाना..रूठना फिर मनाना..
कभी बचपन, कभी लड़कपन, तो कभी अपनापन
जीवन का हर अर्थ ही सार्थक हो जाए॥

हर रोज़ सच्चाई से रूबरू होना..
फिर भी दिल में एक तसल्ली देना..
की एक नयी सुबह ..नयी रोशनी के साथ आयेगी..
जहा पर ,"मै" से कभी तो "हम" होना ..
आँखों मै नमी ना कम होना..
दिल की बेचैनी का, ना कम होना..
अब सिर्फ उस दिन का ही इन्तेज़ार है..
शायद इसी का नाम "प्यार" है ...

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