टी.वी, न्यूज़ चैनल टिककर पर फ्लैश कर तो रहे थे की मुबई में दो गुटों के बीच गोलीबारी जारी है..सबने एक बार देखा होगा फ़िर अपना ध्यान मैच की तरफ़ लगा लिया ..भाई आख़िर ५-० से आगे जो होने जा रहे थे और सीरीज़ भी जीतने॥
अचानक एंकर से बोला गया की हम मैच नही इस गोलीबारी पर धयान केंद्रित करेंगे..भाई इस अचानक फैसले से हैरानी तो ज़रूर हुई ..मगर क्या करे एक फोन रिपोर्टर को मुंबई में लगा hee diya गया की हालात कैसे है... रिपोर्टर ने जैसे तो ब्यौरा देना शुरू किया तो एक बम धमाके की बात कही गई..और लोगों की मौतों की संख्या बताई गई..कुछ तो मिनटों में सारा खेल बदल गया ..ये गोलीबारी बढ़ती चली गई और लोगो के मरने की संख्या भी..लगभग आधे घंटे में ये साफ़ हो गया की ये एक आतंकी हमला है और सभी का ध्यान केंद्रित किया है...ये भारत का सबसे बड़ा आतंकी हमला था, हम तो बस हैरान हो गए थे..मगर काम पर ध्यान देना था...बढ़िया विसुअल्स जो देने थे..सबसे नया ..और ताजा ..हमे सबसे आगे जो होना था..टी आर पी भी तो कोई चीज होती है भला॥
मगर होश तो तब उढ़ गए जब हेमंत करकरे समेत तीन लोगो की मौत की ख़बर आई..ये बड़ी ख़बर थी..ऐ टी एस चीफ की मौत ... होश फाख्ता हो गए , जैसे तैसे रात गुजारी ..सब कुछ लाइव जो था..नींद उढ़ राखी थी..सोचा चलो शाम तक का ये खेल है ख़तम हो जाएगा..मगर दाद देनी होगी आतांक वादियों की..पुरी सुविधा और एक सुनियोजित प्लान बना कर आए थे..खूबसूरत ताज ..बदनुमा ताज हो गया...मौत का खेल सबने टीवी पर देखा..और भारतीय सेना ने अपनी जान पर खेल कर नरीमन हाउस, ओबेरॉय होटल ,और ताज होटल पर कब्ज़ा करने में कामयाब हुए..मगर मजोर संदीप उन्नीकृष्णन की मौत सबको झकजोर गई..और भर गई लोगो में जन आक्रोश,
इस दौरान मेने एक चीज और देखि जो मेरे लिए नई थी...पत्रकारिता की एक नई शुरुआत, या फ़िर एक नया अंदाज़ ..पत्रकार मौत के मुह से लोगो को ख़बर छान छान के दे रहे थे..कोई लेटा लेटा ख़बर sunaa रहा था..कोई चुपके से किसी की छत पर था..मगर जान पर तो सभी की बनी थी..सबने अपनी पूरी ताकत झकजोर दी बेस्ट कवरेज के लिए..आख़िर दर्शक भी तो बटोरने है..सबने अपनी जिम्मेदारी samajhtey हुए उन् दृश्यों को छुपाया जो लाइव आ रहे थे..."" हम आपको पल पल की जानकारी दे रहे है..हम सीधी तस्वीरे आपको सुरक्षा की दृष्टि से नही दिखा रहे..ताकि आतंकियों को सेना के प्लान आफ एक्शन की जानकारी न पहुचे"" मगर सच कुछ hee जानते है॥
एक दूसरा पहलू...
आतंकी गोली बरसा रहे थे और टीवी चैनल के कैमरामैन व रिपोर्टर घटनास्थल पर बहादुरी से आगे बढ़ते चले जा रहे थे, बावजूद इसके कि ये सबको मालूम है कि आतंकवादी मीडियाकर्मियों पर भी गोली बरसाने से गुरेज नहीं कर रहे थे। टीवी न्यूज चैनलों ने आखिरकार ऐसा क्या गलत दिखा दिया, जिससे लोग इस कदर नाराज हैं? सुनिए, कुछ और हकीकत सुनिए। आप सभी इस बात से सहमत तो जरूर होंगे कि इस हमले में कई बातें पहली बार हुई हैं, जैसे-
- पहली बार भारत की तीनों सेनाओं के जवानों ने अभियान में हिस्सा लिया।
- पहली बार भारत में एनएसजी कमांडो इतनी बड़ी संख्या में एक मिशन पर आए।
- पहली बार किसी मिशन पर कमांडो हवा से जमीन पर उतारे गए।
- पहली बार मुस्लिम धर्मगुरुओं ने आतंकियों के शवों को मुंबई में दफनाने से इंकार किया।
- पहली बार आतंकियों ने हमले की जगह पर ही कंट्रोल रुम बनाया।
- पहली बार न्यूज चैनलों ने देशहित में लाइव रोका।
इस घटना ने ये तो बता दिया की हमारी आतंरिक सुरक्षा कितनी मजबूत है और हम कितनी सजग है...
लोगो का गुस्सा जायज़ है....आख़िर कब तक हम अपनों को यु ही खोते रहेंगे?? और नेता लोग भाषण करके चुप्प हो जाए..ये हमेशा से होता आया है ..और शायद होता रहेगा...एक दो इस्तीफों से सच्चाई नही बदलेगी॥
जब कोई नेता आतंक का निशाना बनेगा तब शायद थोड़ा सा सुधार हो जाए॥ क्यूंकि उनकी ज़िन्दगी कीमती है॥
उनमे से कोई उन्नीकृष्णन को अगर कुता बोल भी दे तो क्या हुआ??वो हमारा नेता है ..शायद हमे इन् सब चीजो की आदत से हो गई है.ब्लास्ट हमेशा हुआ है ..लोगो का आक्रोश हमेशा हुआ है..मगर बदला क्या है??
जरा सोचिये..